14 Jul 2025, Mon

परिचय:
देव आनंद, जिनका असली नाम धर्मदेव पिशोरीमल आनंद था, भारतीय सिनेमा के सबसे चहेते, स्टाइलिश और करिश्माई अभिनेताओं में गिने जाते हैं। उन्हें बॉलीवुड का ‘एवरग्रीन स्टार’ कहा जाता है। उन्होंने न केवल अभिनय के क्षेत्र में बल्कि फिल्म निर्माण, निर्देशन और पटकथा लेखन में भी अमूल्य योगदान दिया। उनका जीवन सिनेमा के प्रति जुनून, मेहनत, आत्मविश्वास और नयेपन का प्रतीक रहा।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
देव आनंद का जन्म 26 सितंबर 1923 को ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत (अब पाकिस्तान में) स्थित शकरगढ़ (गुरदासपुर) में हुआ था। उनके पिता पिशोरीमल आनंद एक जाने-माने वकील थे। देव आनंद चार भाई-बहनों में तीसरे थे। उनके बड़े भाई सी.एल. आनंद प्रसिद्ध वकील और छोटा भाई चेतन आनंद एक प्रसिद्ध फिल्म निर्माता थे। एक और भाई विजय आनंद भी हिंदी सिनेमा में सफल निर्देशक बने।

देव आनंद की प्रारंभिक शिक्षा डलहौज़ी के एक बोर्डिंग स्कूल में हुई। इसके बाद उन्होंने लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज यूनिवर्सिटी से अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। वे शुरू से ही पढ़ाई के साथ-साथ थिएटर और कला के प्रति रुचि रखते थे।

फिल्मी करियर की शुरुआत:
1940 के दशक में, भारत में फिल्म इंडस्ट्री तेजी से उभर रही थी और युवाओं को आकर्षित कर रही थी। देव आनंद भी उस भीड़ का हिस्सा बन गए। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे मुंबई आ गए और भारतीय नौसेना में काम करने का अवसर छोड़कर फिल्मों में करियर बनाने का फैसला किया।

उनका पहला ब्रेक 1946 में फिल्म ‘हम एक हैं’ से मिला, लेकिन उन्हें असली पहचान 1948 की फिल्म ‘ज़िद्दी’ से मिली, जिसमें उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई। यह फिल्म सुपरहिट हुई और यहीं से उनका करियर ऊँचाइयों की ओर बढ़ा।

नवकेतन फिल्म्स की स्थापना:
1949 में देव आनंद ने अपने भाई चेतन आनंद के साथ मिलकर नवकेतन फिल्म्स की स्थापना की। यह बैनर न केवल व्यवसायिक रूप से सफल रहा, बल्कि इसने भारतीय सिनेमा को कई यादगार और अर्थपूर्ण फिल्में दीं।

नवकेतन के तहत बनी ‘बाज़ी’ (1951) एक क्राइम थ्रिलर थी और यह उनकी करियर की मील का पत्थर बनी। इसी फिल्म से उन्हें ‘स्टाइल आइकन’ की पहचान मिली। इस फिल्म का निर्देशन गुरु दत्त ने किया था जो बाद में उनके घनिष्ठ मित्र बन गए।

सफलता की ऊंचाइयाँ:
1950 और 1960 का दशक देव आनंद के करियर का स्वर्णिम युग रहा। उन्होंने एक से बढ़कर एक हिट फिल्में दीं, जैसे:

काला पानी (1958) – इस फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
हम दोनों (1961) – एक संवेदनशील और देशभक्ति से भरी फिल्म।
गाइड (1965) – यह आर.के. नारायण के उपन्यास पर आधारित फिल्म थी, जिसमें देव आनंद ने ‘राजू गाइड’ की भूमिका निभाई। यह फिल्म अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराही गई और इसे भारतीय सिनेमा की सबसे बेहतरीन फिल्मों में गिना जाता है।
ज्वेल थीफ (1967), जॉनी मेरा नाम (1970), हरे रामा हरे कृष्णा (1971), और देस परदेस (1978) – इन फिल्मों ने उन्हें लगातार दर्शकों का प्रिय बनाए रखा।
स्टाइल और व्यक्तित्व:
देव आनंद का अंदाज, फैशन सेंस, और संवाद अदायगी उन्हें भीड़ से अलग बनाता था। उनका सिर थोड़ा झुकाकर बोलने का अंदाज, रफ़्तार भरी आवाज़ और बेपरवाही से हेयरस्टाइल उनके चाहने वालों के बीच दीवाना बना देता था।

उनकी पॉपुलैरिटी का आलम यह था कि कहा जाता है, 1950 के दशक में उनकी काली कमीज़ और स्टाइल को देखकर कई लड़कियाँ बेहोश हो जाती थीं, इसलिए मुंबई पुलिस ने उन्हें काली शर्ट पहनने से मना कर दिया था।

प्रेम और निजी जीवन:
देव आनंद का नाम कई अभिनेत्रियों के साथ जोड़ा गया, लेकिन उनकी सबसे प्रसिद्ध प्रेम कहानी रही अभिनेत्री सुरैया के साथ। दोनों के बीच गहरा प्रेम था, लेकिन सुरैया की नानी के विरोध के चलते यह रिश्ता मुकम्मल नहीं हो सका। यह प्रेम अधूरा रह गया, और सुरैया ने ताउम्र शादी नहीं की।

बाद में देव आनंद ने अभिनेत्री कल्पना कार्तिक से शादी की, जो नवकेतन की कई फिल्मों में उनके साथ नज़र आईं। उनके दो बच्चे हुए – बेटा सुनील आनंद और बेटी देविना आनंद।

निर्देशक और निर्माता के रूप में योगदान:
देव आनंद ने अभिनय के साथ-साथ निर्देशन और निर्माण में भी कई प्रयोग किए। हरे रामा हरे कृष्णा (1971) के निर्देशन ने उन्हें एक संवेदनशील फिल्मकार के रूप में पहचान दिलाई। इस फिल्म में उन्होंने जीनत अमान को लॉन्च किया, जो बाद में एक बड़ी स्टार बनीं।

उन्होंने डेस परदेस (1978), लूटमार (1980), स्वामी दादा (1982) जैसी फिल्में भी निर्देशित कीं, जो अपने समय की प्रयोगात्मक और सामाजिक विषयों पर आधारित थीं।

पुरस्कार और सम्मान:
देव आनंद को उनके शानदार योगदान के लिए कई पुरस्कारों से नवाजा गया:

1959 – फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार (काला पानी)
1991 – फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड
1998 – दादा साहेब फाल्के पुरस्कार
2001 – पद्म भूषण, भारत सरकार द्वारा
इसके अलावा उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में सम्मानित किया गया।

अंतिम वर्ष और निधन:
देव आनंद ने जीवन के अंतिम वर्षों तक फिल्मों से अपना नाता नहीं तोड़ा। उन्होंने 80 और 90 की उम्र में भी कई फिल्में बनाई और अभिनय किया, हालांकि उन्हें पहले जैसी सफलता नहीं मिली।

3 दिसंबर 2011 को, 88 वर्ष की उम्र में लंदन में उनका निधन हुआ। वे वहां एक फिल्म प्रोजेक्ट के सिलसिले में गए थे। उनका निधन भारतीय सिनेमा के लिए एक अपूरणीय क्षति थी।

विरासत:
देव आनंद भारतीय सिनेमा के उन नायकों में थे, जो सिर्फ अभिनेता नहीं, बल्कि एक संपूर्ण फिल्म निर्माता, नवाचारकर्ता और प्रेरणा स्रोत थे। उनकी फिल्मों ने समाज, प्रेम, आधुनिकता और यथार्थ को नई दृष्टि दी।

उनकी जीवनी “Romancing with Life” भी प्रकाशित हुई, जिसमें उन्होंने अपने जीवन के तमाम पहलुओं को आत्मकथा के रूप में साझा किया।

निष्कर्ष:
देव आनंद का जीवन एक प्रेरणादायक गाथा है – एक छोटे शहर से निकलकर बॉलीवुड का चमकता सितारा बनने तक की। उन्होंने हमें सिखाया कि जुनून, आत्मविश्वास और नयेपन के साथ कोई भी सपने को साकार कर सकता है। वे भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी फिल्में, उनका अंदाज़ और उनका योगदान हमेशा जीवित रहेगा। वे सच्चे अर्थों में ‘एवरग्रीन’ थे, हैं और रहेंगे।

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