जॉनी वॉकर, जिनका असली नाम बदरुद्दीन जमालुद्दीन काज़ी था, हिंदी सिनेमा के स्वर्ण युग के सबसे प्रतिष्ठित हास्य अभिनेताओं में से एक थे। उनकी हास्य शैली, संवाद अदायगी और अभिनय कौशल ने उन्हें भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में एक अलग पहचान दिलाई।
प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
बदरुद्दीन जमालुद्दीन काज़ी का जन्म 23 मार्च 1924 को इंदौर, मध्य प्रदेश में हुआ था। वे 12 बच्चों वाले एक बुनकर शिक्षक के परिवार से थे। उनके पिता की नौकरी छूटने के बाद, परिवार मुंबई आ गया। काज़ी ने बंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट (BEST) में बस कंडक्टर की नौकरी की, जहाँ वे यात्रियों को अपनी हास्यपूर्ण शैली से मनोरंजन करते थे। उनकी यह कला अभिनेता बलराज साहनी को इतनी पसंद आई कि उन्होंने काज़ी को निर्देशक गुरु दत्त से मिलवाया। गुरु दत्त ने उन्हें ‘बाज़ी’ (1951) में एक शराबी की भूमिका दी और उनका नाम ‘जॉनी वॉकर’ रखा, जो एक प्रसिद्ध व्हिस्की ब्रांड का नाम है।

फिल्मी करियर और प्रमुख भूमिकाएँ
जॉनी वॉकर ने लगभग 300 फिल्मों में अभिनय किया। उनकी प्रमुख फिल्मों में ‘आार पार’ (1954), ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’ (1955), ‘प्यासा’ (1957), ‘मधुमती’ (1958), ‘चोरी चोरी’ (1956), ‘सीआईडी’ (1956), ‘मुगल-ए-आज़म’ (1960), ‘मेरे महबूब’ (1963), ‘आनंद’ (1971) और ‘चाची 420’ (1997) शामिल हैं। उन्होंने ‘शिकार’ (1968) में अपने अभिनय के लिए फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता पुरस्कार जीता।

व्यक्तिगत जीवन और सिद्धांत
जॉनी वॉकर ने अभिनेत्री शकीला की बहन नूरजहाँ से विवाह किया और उनके छह बच्चे हुए। उन्होंने कभी शराब नहीं पी और न ही धूम्रपान किया, जबकि वे पर्दे पर अक्सर शराबी की भूमिका निभाते थे। उन्होंने अपने बेटों को अमेरिका में शिक्षा दिलाई और हमेशा अपने संघर्षों को याद रखते थे।
विरासत और प्रभाव
जॉनी वॉकर ने भारतीय सिनेमा में हास्य अभिनय को एक नई ऊँचाई दी। उनकी भूमिकाएँ आज भी दर्शकों को हँसाने में सक्षम हैं। उन्होंने यह सिद्ध किया कि बिना अश्लीलता के भी हास्य प्रस्तुत किया जा सकता है। उनकी अभिनय शैली और संवाद अदायगी आज भी नवोदित कलाकारों के लिए प्रेरणा स्रोत है।

जॉनी वॉकर का निधन 29 जुलाई 2003 को मुंबई में हुआ। उनकी यादें और योगदान भारतीय सिनेमा में हमेशा जीवित रहेंगे।

