कुलदीप मानक, जिन्हें “कलीयाँ दा बादशाह” के नाम से जाना जाता है, पंजाबी लोक संगीत के एक अद्वितीय और प्रभावशाली गायक थे। उनकी विशिष्ट ऊँची और शक्तिशाली आवाज़ ने उन्हें पंजाब के सांस्कृतिक परिदृश्य में एक अमिट स्थान दिलाया। उनका जीवन और संगीत आज भी लाखों लोगों के दिलों में जीवित है।
प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
कुलदीप मानक का जन्म 15 नवंबर 1951 को पंजाब के बठिंडा जिले के जलाल गाँव में हुआ था। उनका असली नाम लतीफ मोहम्मद खान था। वे मिरासी समुदाय से थे, जो पारंपरिक रूप से संगीत और गायन से जुड़ा हुआ है। उनके पिता, निक्का खान, स्वयं एक गायक थे, और उनके भाई सिद्दीक़ी एक प्रसिद्ध भक्ति गायक थे। बचपन से ही कुलदीप संगीत के प्रति आकर्षित थे और स्कूल में उन्हें “मणका” के नाम से पुकारा जाता था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा जलाल सरकारी हाई स्कूल में हुई, जहाँ वे एक उत्साही हॉकी खिलाड़ी भी थे।
संगीत यात्रा की शुरुआत

कुलदीप मानक ने 17 वर्ष की आयु में लुधियाना जाकर अपने संगीत करियर की शुरुआत की। वहाँ उन्होंने हरचरण ग्रेवाल और सुरिंदर सीमा जैसे गायकों के साथ काम किया। उनका पहला रिकॉर्ड “तेरी कुल्ली दे मुंडिया” 1968 में रिलीज़ हुआ। 1973 में उन्होंने एचएमवी के तहत “पंजाब दियाँ लोक गाथावाँ” नामक ईपी रिकॉर्ड की, और 1974 में “अल्लाह बिस्मिल्लाह तेरी जुगनी” एल्बम रिलीज़ की। उनका पहला एलपी “इक तारा” 1976 में आया, जिसमें “तेरे तिल्ले तों” जैसी प्रसिद्ध कली शामिल थी।
“कलीयाँ दा बादशाह” की उपाधि
कुलदीप मानक को पंजाबी लोक संगीत की पारंपरिक शैली “कली” को पुनर्जीवित करने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने केवल 13-14 कलियाँ गाईं, लेकिन उनकी प्रस्तुति इतनी प्रभावशाली थी कि उन्हें “कलीयाँ दा बादशाह” की उपाधि मिली। उनकी प्रसिद्ध कलियों में “तेरे तिल्ले तों”, “मीरां दे शहर ते जग्गा”, और “साहिबां बनी भड़ावां दी” शामिल हैं। इन गीतों में उन्होंने पंजाब की लोक कथाओं, प्रेम कहानियों और वीरता की गाथाओं को जीवंत किया।
व्यक्तिगत जीवन और विरासत

कुलदीप मानक ने सरबजीत कौर से विवाह किया और उनके दो बच्चे हुए: पुत्र युधवीर मानक और पुत्री शक्ति मानक। युधवीर मानक ने भी संगीत के क्षेत्र में कदम रखा और अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया। कुलदीप मानक का निधन 30 नवंबर 2011 को लुधियाना में हुआ। उनकी स्मृति में लुधियाना में उनके निवास के पास एक प्रतिमा स्थापित की गई है, जो उनके योगदान को सम्मानित करती है।
निष्कर्ष
कुलदीप मानक ने पंजाबी लोक संगीत को एक नई ऊँचाई पर पहुँचाया। उनकी आवाज़, शैली और गीतों ने न केवल मनोरंजन किया, बल्कि पंजाब की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित और प्रचारित भी किया। उनकी कलियाँ आज भी लोगों के दिलों में गूंजती हैं, और वे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।
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