चुपके चुपके 1975 में रिलीज़ हुई एक हिंदी भाषा की कॉमेडी फिल्म है, जिसका निर्देशन ऋषिकेश मुखर्जी ने किया था। यह फिल्म बंगाली फिल्म “छद्मवेशी” का रीमेक थी। फिल्म में धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, शर्मिला टैगोर, जया बच्चन, ओम प्रकाश, अश्रानी, केश्टो मुखर्जी, उषा किरण और डेविड अब्राहम चुलकर जैसे दिग्गज कलाकारों ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थीं। फिल्म में संगीत एस डी बर्मन ने दिया था और इसके गीत आनंद बख्शी ने लिखे थे।
चुपके चुपके एक ऐसी फिल्म है, जो हल्की-फुल्की हास्यप्रद शैली में रिश्तों, भ्रम और मासूम मज़ाक के जरिए दर्शकों का खूब मनोरंजन करती है। फिल्म में हास्य के साथ-साथ प्यार, विश्वास और दोस्ती का खूबसूरत मिश्रण देखने को मिलता है।
फिल्म की कहानी प्रोफेसर परिमल त्रिपाठी (धर्मेंद्र) से शुरू होती है, जो वनस्पति शास्त्र पढ़ाते हैं। एक कॉलेज के बॉटनी टूर के दौरान वह सुलेखा चतुर्वेदी (शर्मिला टैगोर) से मिलते हैं और दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगते हैं। टूर के दौरान परिमल एक बूढ़े चौकीदार की मदद करते हैं, ताकि वह अपने बीमार पोते से मिलने गांव जा सके। परिमल उसकी नौकरी बचाने के लिए खुद चौकीदार का वेश धारण कर लेता है। जब सुलेखा को इस छद्मवेश का पता चलता है, तो वह परिमल की ईमानदारी और सरलता से प्रभावित हो जाती है। धीरे-धीरे दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो जाता है और वे शादी कर लेते हैं।
हालांकि, शादी के बाद सुलेखा बार-बार अपने बहनोई राघवेंद्र शर्मा (ओम प्रकाश) की प्रशंसा करती रहती है। वह उन्हें अत्यधिक बुद्धिमान और आदर्श पुरुष मानती है। यह सुनकर परिमल को सुलेखा के सामने हीन भावना होने लगती है। वह फैसला करता है कि वह राघवेंद्र को बेवकूफ बनाकर यह साबित करेगा कि वह किसी भी तरह से उनसे कम नहीं है।
उसी दौरान राघवेंद्र अपने साले हरिपद (डेविड अब्राहम चुलकर) को एक पत्र लिखते हैं, जिसमें वह अपने ड्राइवर जेम्स डी’कोस्टा की खराब हिंदी से परेशान होकर एक ऐसा ड्राइवर भेजने का अनुरोध करते हैं, जिसे शुद्ध हिंदी बोलनी आती हो। परिमल को यह सुनहरा मौका मिल जाता है। वह खुद को प्यारे मोहन इलाहाबादी नामक ड्राइवर के रूप में पेश करता है। प्यारे मोहन अंग्रेजी भाषा से नफरत का दिखावा करता है और केवल शुद्ध हिंदी बोलता है।
फिर शुरू होता है मस्ती और मज़ाक का सिलसिला। परिमल और सुलेखा मिलकर राघवेंद्र और उनकी पत्नी सुमित्रा (उषा किरण) के साथ शरारतें करने लगते हैं। पहले वे दिखाते हैं कि सुलेखा अपनी शादी से खुश नहीं है। फिर वे यह भ्रम फैलाते हैं कि सुलेखा का अपने ही ड्राइवर प्यारे मोहन के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा है।
इस शरारत में परिमल का दोस्त प्रोफेसर सुकुमार सिन्हा (अमिताभ बच्चन) भी शामिल हो जाता है। वह परिमल का रूप धारण कर राघवेंद्र के घर आता है और खुद को बेहद गंभीर और नीरस व्यक्ति दिखाता है, ताकि राघवेंद्र को और अधिक भ्रमित किया जा सके। सुकुमार का स्वभाव परिमल से बिल्कुल विपरीत होता है, जिससे सभी को और अधिक संदेह होने लगता है।
इस मज़ाक में एक और मज़ेदार मोड़ तब आता है, जब प्रशांत कुमार (अश्रानी) की साली वसुंधरा (जया बच्चन) नकली “परिमल” यानी सुकुमार पर शक करने लगती है। उसे लगता है कि वह अपनी पत्नी सुलेखा से बेवफाई कर रहा है। लेकिन इस दौरान सुकुमार को वसुंधरा से सच्चा प्यार हो जाता है।
अंत में, सुकुमार वसुंधरा को सच्चाई बता देता है और दोनों मंदिर में जाकर शादी कर लेते हैं। इस मज़ाक की पोल तब खुलती है, जब हरिपद प्यारे मोहन से कहता है कि वह “आत्महत्या” कर ले, ताकि परिमल का सच सामने आ सके। तब जाकर राघवेंद्र और सुमित्रा को पता चलता है कि उनके साथ कितना बड़ा मज़ाक हुआ है।
अंत में राघवेंद्र मान जाता है कि वह वास्तव में बेवकूफ बना दिया गया था और परिमल ने साबित कर दिया कि वह किसी से कम नहीं है।
फिल्म में सभी कलाकारों ने अपने किरदारों में जान डाल दी थी:
- धर्मेंद्र (परिमल त्रिपाठी/प्यारे मोहन): धर्मेंद्र का अभिनय फिल्म का मुख्य आकर्षण है। उनका दोहरी भूमिका में सहज हास्यपूर्ण अभिनय दर्शकों को खूब हंसाता है।
- अमिताभ बच्चन (सुकुमार सिन्हा): अमिताभ का संयमित और गंभीर हास्य अभिनय फिल्म में जान डाल देता है। उनका जया बच्चन के साथ रोमांस भी मज़ेदार है।
- शर्मिला टैगोर (सुलेखा चतुर्वेदी): शर्मिला टैगोर ने सुलेखा के रूप में एक मासूम और प्यारी पत्नी का किरदार बहुत खूबसूरती से निभाया है।
- जया बच्चन (वसुंधरा): जया बच्चन का भोला और चंचल अंदाज फिल्म में एक अलग ही रंग भरता है।
- ओम प्रकाश (राघवेंद्र शर्मा): ओम प्रकाश ने राघवेंद्र के किरदार को बखूबी निभाया है। उनकी बेवकूफी और मासूमियत ने फिल्म में हास्य का रंग जमा दिया।
- अश्रानी (प्रशांत कुमार): अश्रानी ने अपनी छोटी लेकिन प्रभावशाली भूमिका में दर्शकों को खूब हंसाया।
- केश्टो मुखर्जी (जेम्स डी’कोस्टा): केश्टो मुखर्जी का छोटा सा रोल दर्शकों के लिए हंसी का पिटारा साबित हुआ।
फिल्म का संगीत एस डी बर्मन ने दिया था और इसके गीत आनंद बख्शी ने लिखे थे। फिल्म के गीतों में हास्य और प्रेम का अद्भुत संयोजन देखने को मिलता है:
- अब के सजन सावन में – किशोर कुमार और लता मंगेशकर की आवाज़ में यह गीत फिल्म का सबसे लोकप्रिय गाना है। इसमें धर्मेंद्र और शर्मिला टैगोर की खूबसूरत केमिस्ट्री देखने को मिलती है।
- चलो सजना जहां तक घटा चले – लता मंगेशकर और किशोर कुमार का यह मधुर गीत दर्शकों को खूब पसंद आया।
- बागों में बहार है – यह गीत अमिताभ बच्चन और जया बच्चन पर फिल्माया गया है। इसमें उनका रोमांस और नटखटपन देखने लायक है।
चुपके चुपके एक शानदार हास्य फिल्म है, जिसमें हल्के-फुल्के मज़ाक और रिश्तों की गर्माहट को खूबसूरती से दर्शाया गया है। ऋषिकेश मुखर्जी का कुशल निर्देशन, कलाकारों का बेहतरीन अभिनय और एस डी बर्मन का मधुर संगीत इस फिल्म को हिंदी सिनेमा की एक कालजयी रचना बनाता है। वर्षों बाद भी यह फिल्म दर्शकों को हंसाने और गुदगुदाने में सफल रहती है।