स्वर्ण प्राशन संस्कार: बच्चों के लिए आयुर्वेदिक सुरक्षा कवच
डेरा बस्सी स्थित सिटी अस्पताल में भी इसके ड्रॉप्स पिलाये जाते हैं
परिचय
भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली आयुर्वेद केवल रोगों के उपचार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर चरण में स्वास्थ्य की रक्षा और संतुलन बनाए रखने पर ज़ोर देती है। इसी प्रणाली का एक महत्वपूर्ण अंग है – स्वर्ण प्राशन संस्कार, जिसे नवजात शिशुओं से लेकर 12 वर्ष तक के बच्चों के शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास के लिए अत्यंत लाभकारी माना गया है।
स्वर्ण प्राशन क्या है?
स्वर्ण प्राशन एक आयुर्वेदिक औषधीय प्रक्रिया है जिसमें शुद्ध स्वर्ण भस्म, घृत, शहद और बुद्धिवर्धक औषधियों का उपयोग करके एक मिश्रण तैयार किया जाता है। इस औषधि की कुछ बूंदें बच्चों को दी जाती हैं। इसका उद्देश्य उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता, स्मरण शक्ति, पाचन क्षमता और संपूर्ण विकास को बढ़ाना होता है।

आयुर्वेद में इसका महत्व
प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथ काश्यप संहिता में स्वर्ण प्राशन का उल्लेख स्पष्ट रूप से मिलता है:
“सुवर्णप्राशनं मेधाग्निबलावर्धनम्। आयुष्यं मंगलं पुण्यं वर्ण्यं ग्रहापहम्॥”
इसका अर्थ है कि स्वर्ण प्राशन से बुद्धि, पाचन शक्ति, बल और आयु में वृद्धि होती है। यह शुभ, पुण्यदायक, त्वचा को निखारने वाला और नकारात्मक प्रभावों से सुरक्षा प्रदान करने वाला माना गया है।
स्वर्ण प्राशन की प्रक्रिया
स्वर्ण प्राशन संस्कार के लिए विशेष रूप से पुष्य नक्षत्र को अत्यंत शुभ माना गया है। इस दिन विशेष रूप से तैयार की गई औषधि को बच्चे की जीभ पर कुछ बूंदों के रूप में डाला जाता है। कुछ माता-पिता इसे महीने में एक बार दिलवाते हैं, जबकि कुछ बच्चे विशेष जरूरत के अनुसार इसे कुछ महीनों तक नियमित रूप से लेते हैं।
स्वर्ण प्राशन के प्रमुख लाभ
- रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि:
स्वर्ण प्राशन के नियमित सेवन से बच्चों का इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। वे सर्दी, खांसी, बुखार जैसी आम बीमारियों से बेहतर तरीके से लड़ पाते हैं। - बुद्धि और एकाग्रता में सुधार:
आयुर्वेदिक दृष्टि से स्वर्ण प्राशन मस्तिष्क की क्रियाशीलता को तेज करता है। इससे बच्चों में एकाग्रता और स्मरण शक्ति में सुधार होता है, जिससे उनकी पढ़ाई में भी सकारात्मक असर पड़ता है। - पाचन शक्ति में सुधार:
यह औषधि बच्चों की पाचन शक्ति को बढ़ाती है, जिससे वे भोजन को ठीक से पचा पाते हैं और उन्हें भूख भी अच्छे से लगती है। - ऊर्जा और बल में वृद्धि:
स्वर्ण प्राशन से बच्चों को शारीरिक रूप से सक्रिय रहने में मदद मिलती है। वे अधिक ऊर्जावान महसूस करते हैं और थकावट कम होती है। - त्वचा में निखार और एलर्जी से राहत:
आयुर्वेद के अनुसार स्वर्ण प्राशन त्वचा को भीतर से पोषण देता है। इससे बच्चों की त्वचा में चमक आती है और वे सामान्य त्वचा संबंधी समस्याओं से भी बचाव कर पाते हैं।
गोरखपुर का पायलट प्रोजेक्ट
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के भड़सर गांव में वर्ष 2021–22 के दौरान 800 कुपोषित बच्चों पर एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत स्वर्ण प्राशन संस्कार कराया गया। यह प्रयोग आयुर्वेदिक विशेषज्ञों की देखरेख में हुआ और इसके परिणाम बहुत सकारात्मक रहे।
प्रमुख निष्कर्ष:
लगभग 40% बच्चे पूर्णतः स्वस्थ हो गए।
उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई।
बच्चों की ऊर्जा, वजन और पढ़ाई में ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में सुधार देखा गया।
इस प्रोजेक्ट को PGI लखनऊ, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) और सेंटर फॉर बायोमेडिकल रिसर्च लखनऊ द्वारा तकनीकी सहयोग मिला। परिणामों के आधार पर विशेषज्ञों ने सिफारिश की कि स्वर्ण प्राशन को राज्य स्तरीय योजना के रूप में अपनाया जाना चाहिए।
स्वर्ण प्राशन बनाम वैक्सीनेशन
कई माता-पिता स्वर्ण प्राशन को आधुनिक वैक्सीनेशन का विकल्प समझ लेते हैं, लेकिन यह एक भ्रम है। स्वर्ण प्राशन कोई वैक्सीन नहीं है। यह शरीर की प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक शक्ति को मजबूत करता है जबकि वैक्सीन विशेष रोगों के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रदान करती है। दोनों का उद्देश्य अलग-अलग है और बच्चों को दोनों का लाभ मिलना चाहिए।
डेराबस्सी में स्वर्ण प्राशन का प्रचलन
हमें यह जानकर खुशी हुई कि पंजाब के डेराबस्सी शहर में भी स्वर्ण प्राशन संस्कार को फिर से अपनाया जा रहा है। सिटी अस्पताल, डेराबस्सी में पिछले दो वर्षों से हर महीने पुष्य नक्षत्र के दिन यह संस्कार नियमित रूप से किया जा रहा है।
यहां बच्चों के अभिभावकों ने बताया कि:
उनके बच्चे पहले की तुलना में कम बीमार पड़ते हैं।
बच्चों में सुनने की शक्ति बेहतर हुई है।
पढ़ाई में ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बढ़ी है।
यह अनुभव यह साबित करता है कि स्वर्ण प्राशन केवल सिद्धांत नहीं, बल्कि व्यावहारिक रूप से भी प्रभावी उपाय है।
भारत में इसका बढ़ता चलन
आज देशभर में स्वर्ण प्राशन को लेकर नई जागरूकता देखी जा रही है। आयुष मंत्रालय, विभिन्न आयुर्वेदिक अस्पताल, निजी क्लीनिक और सामाजिक संस्थाएं इस संस्कार को पुनः जनमानस में ला रही हैं। विशेषकर पुष्य नक्षत्र के दिन इसे बच्चों को पिलाना अब फिर से एक नियमित प्रथा बन रही है।
निष्कर्ष
स्वर्ण प्राशन संस्कार भारत की एक प्राचीन और वैज्ञानिक दृष्टि से मान्य परंपरा है। यह केवल धार्मिक या सांस्कृतिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि बच्चों के संपूर्ण विकास और दीर्घकालिक स्वास्थ्य के लिए एक सशक्त औषधीय प्रणाली है। आधुनिक शोध और अनुभवों ने यह सिद्ध कर दिया है कि यदि यह संस्कार योग्य मार्गदर्शन और शुद्ध सामग्री के साथ किया जाए, तो आने वाली पीढ़ी शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक रूप से अत्यंत मजबूत बन सकती है।
yash
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