8 Jun 2025, Sun

अमरीश पुरी: एक विलक्षण अभिनेता की जीवनी

अमरीश पुरी: एक विलक्षण अभिनेता की जीवनी

भारतीय सिनेमा के इतिहास में कुछ ऐसे कलाकार होते हैं जिनका अभिनय इतना प्रभावशाली होता है कि वे अपने किरदारों से कहीं अधिक प्रसिद्ध हो जाते हैं। ऐसे ही एक महान अभिनेता थे अमरीश पुरी, जिनका नाम सुनते ही ‘मोगैंबो खुश हुआ’ जैसी संवाद और डरावने खलनायकों की छवि आँखों के सामने आ जाती है। अमरीश पुरी ने अपने करियर में जितने भी खलनायक किरदार निभाए, वे इतने सशक्त और प्रभावशाली थे कि वे आज भी भारतीय सिनेमा के सबसे यादगार पात्रों में गिने जाते हैं।

प्रारंभिक जीवन
अमरीश पुरी का जन्म 22 जून 1932 को नवांशहर (अब शाहिद भगत सिंह नगर), पंजाब में हुआ था। उनके पिता का नाम लाला निहाल चंद पुरी और माता का नाम वेद कौर था। वे पाँच भाई-बहनों में से एक थे। उनके बड़े भाई चमन पुरी और मदन पुरी पहले से ही फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय थे। अमरीश पुरी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा शिमला में प्राप्त की और बाद में उन्होंने बी.ए. की डिग्री प्राप्त की।

वे बचपन से ही अभिनय में रुचि रखते थे, लेकिन उनका सफर इतना आसान नहीं था। उन्होंने एक बार पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट में दाखिला लेने की कोशिश की थी, लेकिन वे असफल रहे। इसके बावजूद उन्होंने अपने सपनों को नहीं छोड़ा और थिएटर से जुड़ गए।

थिएटर से फिल्मों तक
अमरीश पुरी ने अपने करियर की शुरुआत बतौर बीमा कंपनी में नौकरी से की, लेकिन उनका दिल थिएटर में ही लगा रहता था। उन्होंने प्रसिद्ध थिएटर कलाकार ईब्राहीम अल्काज़ी और सत्यदेव दुबे के मार्गदर्शन में अभिनय की बारीकियाँ सीखीं। वे भारतीय जन नाट्य संघ (IPTA) से जुड़े और रंगमंच पर एक सशक्त अभिनेता के रूप में अपनी पहचान बनाई।

1970 के दशक में उन्होंने फिल्मों में छोटे किरदारों में काम करना शुरू किया। हालांकि शुरुआत में उन्हें पहचान नहीं मिली, लेकिन उनका दृढ़ निश्चय और प्रतिभा रंग लाई।

फिल्मी करियर
अमरीश पुरी को पहला बड़ा ब्रेक 1980 में फिल्म हम पांच में मिला, लेकिन उन्हें असली पहचान मिली फिल्म मशाल (1984) और विदा (1982) जैसी फिल्मों से। इसके बाद उन्होंने मिस्टर इंडिया (1987) में मोगैंबो के किरदार से ऐसा जलवा बिखेरा कि वे भारतीय सिनेमा के सबसे यादगार खलनायकों में गिने जाने लगे।

अमरीश पुरी ने अपने करियर में 400 से अधिक फिल्मों में काम किया। उन्होंने हिंदी के अलावा तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, और मराठी फिल्मों में भी अभिनय किया।

उनके प्रमुख फिल्मों में शामिल हैं:

मिस्टर इंडिया (1987) – मोगैंबो

नगीना (1986) – भैरवनाथ

त्रिदेव (1989) – भुजंग

घायल (1990) – बलवंत राय

फूल और कांटे (1991) – नगेन्द्र

दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (1995) – चौधरी बलदेव सिंह

करण अर्जुन (1995) – ठाकुर दुर्गा सिंह

विरासत (1997) – शिवनाथ

हालांकि अमरीश पुरी को अधिकतर खलनायक भूमिकाओं के लिए जाना जाता है, लेकिन उन्होंने कई सकारात्मक भूमिकाएँ भी निभाई, जैसे कि फिल्म दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे में एक सख्त लेकिन अंत में भावुक पिता का किरदार।

हॉलीवुड में भी पहचान
अमरीश पुरी ने केवल भारतीय फिल्मों में ही नहीं, बल्कि हॉलीवुड में भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। उन्होंने स्टीवन स्पीलबर्ग की फिल्म इंडियाना जोन्स एंड द टेम्पल ऑफ डूम (1984) में खतरनाक पुजारी मोलाराम की भूमिका निभाई थी। इस किरदार को भी दर्शकों ने काफी सराहा और इससे अमरीश पुरी को अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली।

अभिनय शैली
अमरीश पुरी की आवाज़ भारी, गंभीर और प्रभावशाली थी। उनका चेहरा और आँखों की अभिव्यक्ति दर्शकों पर गहरा प्रभाव डालती थी। वे अपने किरदारों में इतना रम जाते थे कि दर्शक उन्हें असल जीवन में भी वैसा ही समझने लगते थे। उनकी संवाद अदायगी और शरीर की भाषा (body language) इतने सटीक होते थे कि वे किसी भी दृश्य को जीवंत बना देते थे।

वे हमेशा अपने किरदारों की तैयारी में समय लगाते थे और डायलॉग्स पर विशेष ध्यान देते थे। वे एक पेशेवर कलाकार थे जो समय के पाबंद और अनुशासित थे।

निजी जीवन
अमरीश पुरी ने उर्मिला दिवेकर से विवाह किया था। उनके एक बेटा है – राजीव पुरी, जो एक व्यवसायी हैं। अमरीश पुरी का व्यक्तिगत जीवन बहुत ही शांत और सादा था। वे फिल्मों में जितने खतरनाक दिखते थे, असल ज़िंदगी में उतने ही विनम्र, सरल और स्नेही इंसान थे।

सम्मान और पुरस्कार
अमरीश पुरी को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्होंने कई बार फिल्मफेयर पुरस्कार जीता, खासकर सर्वश्रेष्ठ खलनायक की श्रेणी में।

1991 – घायल के लिए सर्वश्रेष्ठ खलनायक (फिल्मफेयर अवॉर्ड)

1997 – विरासत के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता (फिल्मफेयर अवॉर्ड)

इसके अलावा उन्हें कई राज्य स्तरीय और फिल्मी संस्थाओं से भी पुरस्कार मिले।

मृत्यु
12 जनवरी 2005 को अमरीश पुरी का मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में ब्रेन ट्यूमर के कारण निधन हो गया। उनकी उम्र उस समय 72 वर्ष थी। उनकी मृत्यु से भारतीय सिनेमा ने एक अनमोल रत्न खो दिया।

विरासत
अमरीश पुरी भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका काम, उनकी फिल्मों के किरदार और उनके संवाद आज भी जिंदा हैं। वे उन चंद कलाकारों में से हैं जिन्होंने खलनायक की भूमिका को एक नई पहचान दी। वे एक ऐसे अभिनेता थे जिनके बिना 80 और 90 के दशक की फिल्मों की कल्पना अधूरी है।

उनकी संवाद “मोगैंबो खुश हुआ”, “जा सिमरन जा, जी ले अपनी ज़िंदगी” और “दुर्योधन समझ के किया था, भूल गया कि अर्जुन सामने है” आज भी भारतीय सिनेमा प्रेमियों की जुबान पर हैं।

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